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दोस्ती / कविता कानन / रंजना वर्मा

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दोस्ती
गर्हित और
सराहनीय
त्याज्य व
स्वीकार योग्य
दोस्ती
पाक और चीन जैसों की
मुंह मे भाई
अंदर से कसाई
भाई कह कर
गले मिलते
और पीठ में
छुरा भोंकने में भी
गुरेज़ न करते ।
दोस्ती करो
कृष्ण सुदामा सी
जहाँ छोटे पड़ जाते हैं
छोटे बड़े
अमीरी गरीबी
के सारे बन्धन
शेष रहता है
निस्वार्थ प्रेम ।
अनुकरणीय मित्रता
कृष्ण द्रौपदी की
जो साथ निभाये
हर दुख सुख में
काम आये
आपात्काल में ।
त्याग दो
ऐसी मित्रता
जो खड़ी हो
स्वार्थ की नींव पर
जिसमे धोखा हो
विश्वासघात हो
दुख हो
विनाश की सौगात हो ।
सावधान
ऐसे कपट मित्रों से ।