भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिजीविषा / कविता कानन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 5 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहता तरुवर
काट दिया शीश को
शाखा रूपी भुजाओं को
किन्तु
मिटा नहीं सके
मेरे अंदर पनपती
जिजीविषा को
फूट पड़ी वह
स्वयं सत्वर
कोपलों का रूप धर कर
देख रही है
अनन्त आकाश को
वही है
उसका लक्ष्य
फिर बनूँगा मैं
सघन , विशाल वृक्ष।
आयेंगे अनेक पक्षी
गूँजेगा कलरव
बनेंगे नये नये घोंसले
जन्मेंगी पीढ़ियाँ
उड़ेंगे पंछी
अपने पंख पसार
अनन्त आकाश की ओर ...