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डायरी और मैं / कविता कानन / रंजना वर्मा
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हर गुजरता पल
डायरी में हूँ सँजोती
छिपा रखे हैं इस मे
यादों के अनमोल मोती।
जब भी होता है
मन बेचैन
पलट लेती हूँ
इस के पन्नों को
जी लेती हूँ फिर से
उन गुजरे हुए
सुख दुख के पलों को
जगा लेती हूँ
मन के किसी कोने में
एक उम्मीद
कभी तो मिलेगी
मेरे सपनों को दीद
घेर लेती है मुझे
डायरी में रची बसी
यादों की खुशबू
और डूब जाती हूँ मैं
आनन्द के अमृत में
आकण्ठ ....