भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद-५ : जागो मेरे साथ / सुरेन्द्र स्निग्ध

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 6 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र स्निग्ध |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई टेलीफोन बूथ
अभी नहीं है जगा
बगल के गेस्ट हाउस का
बन्द पड़ा है गेट
बस स्टैण्ड के बगल का
सोया है बाज़ार ।

खुले हैं रिक्शेवाले
खुला है गन्तव्य
गन्तव्य का नहीं है
पता
कहाँ जाऊँ ?

इस रिक्शे में
सोया पड़ा है
सारा शहर ।

जागो कि
जगे अहसास
प्रेमिका के
गर्म आग़ोश का ।