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बचपन / कविता कानन / रंजना वर्मा

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बचपन
तू फिर
वापस आ जा.
जब तू था
तब ख़्वाब बहुत थे
हँसने के
अंदाज़ बहुत थे
चिंता फिक्र
नहीं थी कोई
अरमानों से
भरी रसोई
हम राजा थे
अपनी बातें
मनवा लेते
अपनी चाहत
पूरी होती
कब अपनों से
दूरी होती ?
फिर हम सब
बच्चे बन जायें
प्यारे मीठे
ख़्वाब सजायें
खुद रूठें
खुद ही मन जायें.
अलमस्ती के
दीप जला जा
बचपन
एक बार फिर आ जा ....