भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मूर्ख / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 7 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र स्निग्ध |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखिए, रामसकल यादव जी —
देखिए इस प्रोफेसर को पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हैं
कितने बड़े मूर्ख हैं
लगा लीजिए अन्दाज़ा
हमसे ये पूछ रहे हैं —
कब जाइएगा दिल्ली, हुज़ूर !
चाहते हैं कि हमारी हो
एक महीना पहले ही एडवांस बुकिंग
— सर, लिखवा दीजिए
पूरे शहर की दीवारों पर —
अँग्रेज़ी-विरोध का मतलब आरक्षण-विरोध,
एक बात का ध्यान रखिएगा
हुज़ूर, मेरे लिए खासकर
लोक सेवा आयोग में
एक सदस्य की जगह ख़ाली हो रही है
और मैं हूँ.... कि मैं हूँ....