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नासदीय सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 129 / 3 / कुमार मुकुल

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ओह घरी
इ अन्‍हार जइसन ब्रह्मांड
अन्‍हारे में डूबल रहे
चारो ओर
अछोर जले जल रहे
ओह अछोर खालीपन में
बस उहे एगो तत्‍व
बरहम मौजूद रहन॥3॥

तम आसीत्तमसा गूढमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदं।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकं॥3॥