भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुलक्षण / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 8 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संवर्त / महेन्द्र भटनागर }} सुब...)
सुबह से आज
किस अव्यक्त से
उर उल्लसित !
सहसा
सुभाषित राग,
दायीं आँख
रह-रह कर
विवश स्पन्दित !
दूर कलगी पर
बिखरती
अजनबी गहरी सुनहरी आब,
पहली बार
गमले में खिला है
एक लाल गुलाब !
न जाने किस
अजाने
आत्म-शुभ सम्भाव्य की
यह भूमिका !
रोमांच पुष्पों से
लदी तन-यूथिका !
शायद,
आज तुमसे भेंट हो !