भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काळ बरस रौ बारामासौ (माह) / रेंवतदान चारण

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:26, 8 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेंवतदान चारण |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आधोइ माघ उतरतां बसंत पंचमी पैल
काळ देख कतरायग्यौ छिटक छोडग्यौ छैल

फूल सुरंगी बेलड़ी बाग बगीचां फूल
बालम तिया बिसराय नै भारी कीनी भूल

काची काची कूंपळां हरख्या तरवर खेत
काळ काढै क्यूं आंखियां खड़सां पाछा खेत

मिंत महीणौ माघ रौ हिवड़ै नै हुलसाय
कर मत चिन्ता काळ री मिनख जमारै आय

असाढ महीणौ आवसी संग सांवण सरसाय
भरतार मिलांला भादवै तन मन नै बिलमाय