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कभी मत सोचना साजन हिया से दूर जाने की / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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कभी मत सोचना साजन हिया से दूर जाने की॥
पिया से दूर रहकर क्यों
जिया बेचैन होता है ,
मनोरथ व्यर्थ हो जाता
किसी का चैन खोता है।
हृदय में चाह रहती है सदा प्रिय को लुभाने की॥
चली ठंढी हवा देखो
लिये मधुगन्ध फूलों की ,
दिलाती याद है जैसे
सुहानी रात झूलों की।
तुम्हें परवाह रहती थी हमारे पास आने की॥
निशा बीती हुईं हैं स्वप्न
वे सब चाँदनी रातें ,
मगर लिक्खी हैं मन कागज
पे अब तक वो सभी बातें।
गये तुम रूठ जग से हो जुगत कैसे मनाने की॥