भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा / फुलवारी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 9 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=फुल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब जाड़े की ऋतु आती।
बरखा बूंदे बरसाती॥
करती सब को ट्रस्ट हवा।
फिरती है अलमस्त हवा॥
गर्मी में थक जाती है।
कभी-कभी रुक जाती है॥
उमस बढ़ाती व्यस्त हवा।
कर देती तब त्रस्त हवा॥