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तितली भेजे रोज़ सन्देशा भँवरे गुनगुन गायें / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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तितली भेजे रोज़ सन्देसा भँवरे गुन गुन गायें।
खुशबू के खत बाँच बाँच कर पागल हुईं हवाएँ॥
कभी अमावस घिरे घनेरी
कभी चाँदनी रातें
कभी खिज़ा तो कभी सुमन
 करते तितली से बातें
खेल मनोहर दिखे प्रकृति का मौसम आयें जायें॥
रात चाँदनी झर झर रोयी
सजल फूल सब पत्ते,
जब जब धुँआ उड़ाये कोई
रोयें मधु के छत्ते।
आओ हम तुम दोनों थोड़ा थोड़ा नीर बहायें॥
कष्ट न इनका समझे कोई
चलते रोज़ कुल्हाड़े,
मुक्त हस्त तरु जीवन बाँटें
आयें कभी न आड़े।
हम निर्मम निर्मोही बन सुखमय भविष्य ठुकरायें॥