भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असली क्रांति / रणजीत
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 16 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=बिगड़ती ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घोड़े पर सवार एक चमार
चाबुक बरसा रहा है
घोड़े से उतार दिये गये एक ठाकुर साहब पर
सचमुच एक क्रान्ति आ गयी है
पैदल सवार हो गये हैं
और सवार पैदल
उन्होंने अपनी जगहें बदल ली हैं
पर घोड़े और चाबुक?
वे ज्यों के त्यों हैं।
असली क्रान्ति तो वह होगी जिसमें
न घोड़े रहेंगे, न चाबुक
सब पैदल होंगे अपने ही पांवों पर चलते हुए।