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एक दुविधाग्रस्त महिला / रणजीत

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बड़ा मुश्किल है यह तय करना
कि बम्बई जाऊँ या कलकत्ता
जब से यह सवाल मुखातिब है
परेशान हूँ सोच-सोच कर
पर कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है
कि बम्बई जाऊँ या कलकत्ता
अगर किसी एक जगह का रिजर्वेशन
न मिल रहा होता
तो अपने आप तय हो जाता
पर मुश्किल यह है कि दोनों ही शहरों का
कन्फर्म्ड रिजर्वेशन मिल रहा है
अब तो खुद ही तय करना पड़ेगा
वैसे बुरी नहीं है बम्बई भी
पर कलकत्ते की बात ही दूसरी है
वैसे कठिनाईयां कलकत्ते की यात्रा की भी
कम नहीं है
पर वे तो कहीं की भी यात्रा में होंगी
चलो दोनों ही जगहों का रिजर्वेशन करवा लेती हूँ
तीन दिन पहले एक कैंसिल कर दूंगी
पता नहीं तब तक
परिस्थितियों का ऊँट किस करवट बैठे
हो सकता है किसी एक में
भूकम्प ही आ जाए या समुद्री तूफान
और जाना अपने आप ही रद्द हो जाए।
आप चल रहे होते
तो अपने आप ही तय हो जाता
पर आप न चल रहे हैं न मुझे बता रहे हैं
कि कहाँ जाऊँ?
आपने, ‘जहाँ चाहो चली जाओ’
की आजादी क्या दे दी
मुझे फंसा दिया
खैर, अब तो ख़ुद ही तय करना पड़ेगा
कि बम्बई जाऊँ या कलकत्ता?
यह ठीक है कि बम्बई में
शिवसेना और मनसे की गुंडागर्दी है
आप पिट सकते हैं
मुम्बई को बम्बई कहने भर से
पर कलकत्ते में कौन सुर्खाब के पर हैं
वहाँ भी तो माओवादी विस्फोट कर सकते हैं
कभी भी,
अच्छा हो कि आप ही सुझा दें कि कहाँ जाऊँ?
कम से कम बाद में यह पछतावा तो नहीं होगा
कि मैंने गलत निर्णय किया
पछतावा होगा तो यही कि
मैंने आपका सुझाव क्यों माना।
वैसे अपने अन्तर्मन से पूछूँ
तो वो तो यही कहता है कि
कौन सहेजे खाना-पानी
कौन संभाले गहना-लत्ता
भाड़ में जाये मुई मुंबई
जाय जहन्नुम में कलकत्ता।