भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमख़ोर / उषा राय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:01, 18 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उफनते दूध को सम्भालो
पशुओं का चारा-पानी जल्दी
छाती लगे बच्चों को उठाओ
आएगा, आता है आदमख़ोर ।
लार-सने दाँत चमकती आँखें
मारेगा झपट्टा शिकार पर
रक्त माँस का कतरा-कतरा
खाएगा, खाता है आदमख़ोर ।
मीठी बोली पर न जाना
अपने-पराए पर न जाना
वहीं कहीं तुम्हारे बीच बैठा
हँसेगा, हँसता है आदमख़ोर ।
हाशिए से उठ चलो, बढ़ चलो
शहर के बीचोबीच राजपथ पर
आवाज़ दो हम एक हैं . . .
डरेगा, डरता है आदमख़ोर ।