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बिलकिस बानो से / उषा राय

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पतझड़ में केवल
पत्ते ही नहीं गिरते
गिरती है नफ़रत भी ।

पुरानी दीवारों से
केवल भित्तियाँ ही नहीं
झरती हैं साज़िशें भी

बुलन्दी से केवल
झाड़-फ़ानूस ही नहीं गिरते
गिरती हैं आस्थाएँ भी

इन सबमें डूब कर
इतिहास बदलता है
अपना रक्तरँजित पन्ना

सब कुछ भूलकर
एक सामान्य ज़िन्दगी
शुरू करना चाहती हो
बिलकिस, बिलकुल सही
यही कहना था मुझे तुमसे
कुनानपोशपुरा-कश्मीर की
मुस्लिम महिलाओं से भी
यही कहना था मुझे
कि अपमान कभी मत भूलना

दरकती दीवारों की भित्तियाँ
बताती हैं कि साज़िशों को सुनकर
दीवार छोड़ दिया था उन्होंने

पतझड़ की सूखी पत्तियाँ
बताती हैं कि किस तरह
की आग से सूख गई थीं वे

अपनी यातनाओं की बातें
ज़रूर बता देना और यह भी कि
कैसे चलीं थीं तुम काँच की किरचों पर

यह एक मुनासिब कार्रवाई है जो
चलती रहेगी इनके समानान्तर ।