भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अमृत पल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:51, 19 मई 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

201
प्रेम का कर्ज़
कभी उतरे नहीं
 बढ़ता जाए
202
उम्र हमारी
 बढ़े सौगुना फिर
 तुम्हें ही लगे ।
203
बीते बरसों
तुम्हे मिल मन में
 खिली सरसों ।
204
जीवन भर
निभाने का आनन्द
मेरा स्वर्ग है ।
205
पी लेंगे हम
अमृत समझके
दुख तुम्हारे ।
206
तुम्हारा मन
आँगन -उपवन
फूल -सा खिले ।
207
मेरी दुआ।एँ
 सराबोर फ़िजाएँ
करें आँगन
208
पथ में धूल
व आँगन में शूल
कभी न आएँ ।
209
मोह के तार
 बाँधे बाहुपाश में
सारा संसार
210
पाती न मिली
लगा -हम भटके
 मरुभूमि में।
211
साँझ के साए-
में पीर बन जगी
 यादें तुम्हारी ।
212
काँपते हाथों
खोला लिफ़ाफ़ा ,कोरा
कागज़ मिला ।
213
रिश्ते न होते
प्राणहीन शब्द ये
 प्राण हमारे ।
214
बाँधूँगा कैसे
रिश्तों में तुम्हें , तुम
 इनसे परे ।
215
मीत कहूँ या
जीवन की गीता का
 गीत कहूँ मैं ।
216
युग न जाने
कभी प्रेम का अर्थ
करे अनर्थ
217
गीत -बहिना
जीवन का गहना
मेरा कहना ।
218
अमृत- पल
जो आज मिल गए
क्या होगा कल?
219
पल -पखेरू
उड़ गए सब वे
लौट न पाए ।
220(274)
परखना है
पावनता किसी की
पूछो मन से ।