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हम अपनी सेना बनायें / कर्मानंद आर्य

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रात दिन मार खायें
उससे अच्छा है हम अपनी सेना बनाएं

फेल हो गई व्यवस्था
हद तक बढ़ गई दुर्दशा
आंत की रोटी छीनी
जात बताई कमीनी
आओ कंधे से कंधा जोड़ लें
बारूदों की ओर मुख मोड़ लें

युवजन! तुम्हारी जवानियाँ प्रतिदान मांगती हैं
बलिदान मांगती हैं, कुलदान मांगती हैं
श्रमशील हंसिये उठो, तुम्हारा समय आ गया
कुदालियाँ उठो, तुम्हारा समय आ गया

देश के गद्दारों ने मुँह उठाया है
घास की रोटी खाने वालों ने हमको चिढ़ाया है

मिट्टी के शेरों पर मूत दो
मुगलों से ताकत लो, सूत दो

रोज-रोज मार खाने से अच्छा है एक रोज मर जाना
टिम-टिम जलने से अच्छा है भभक कर जल जाना

आओ, सैनिक छावनी में डेरा लगायें
अन्यायी अत्याचारी के गढ़ में बारूदों की तरह बिछ जाएँ

केन बमों में आग है
सुतली बमों में आग है
जो आग है तुम्हारे भीतर उसको जलाएं

आओ, हम अपनी ताकत बन जाएँ