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सवेरा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का / उदयप्रकाश

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न्यूयार्क में सुबह के
चार स्तम्भ हैं कीचड़ के
और बदबूदार पानी में नहाते
काले कबूतरों की डरावनी आन्धी है ।

न्यूयार्क में सवेरा
कराहता है आग से बचने वाले छज्जों पर
देवदूतों के पास
ख़ुद ही रची-बनाई गई पीड़ाओं के लिए
चमत्कारिक दैवी जटामासी खोजता हुआ ।

न्यूयार्क में सवेरा आया है
लेकिन हर किसी का मुँह ख़ाली का ख़ाली है
क्योंकि सुबह और उम्मीद अब यहाँ असम्भव हैं ।
कभी-कभी उन्मत्त-वहशी सिक्कों का गिरोह यहाँ
दाख़िल होता है और पीछे छूट गए बच्चों को निग़ल लेता है ।

जो लोग ज़रा जल्दी निकल आए थे बाहर वे अच्छी तरह से जानते हैं
न कहीं कोई स्वर्ग है न कहीं प्यार जो जन्मता है फलता-फूलता है अपने मिटने से पहले;
वे जानते हैं वे इस दलदल के कीचड़ में लिथड़ जाएँगे
आँकड़ों और क़ानूनों के अन्धे खेल में
अपनी अथक निष्फल मेहनत-मशक़्क़त के साथ ।

शोरशराबों और ज़ँजीरों के नीचे दफ़्न है रोशनी
जड़ों से उखड़ी ख़ामोशी के लिए अब एक अहम मुनादी
और किसी उसनींद में अधजगी भीड़ किसी बुर्ज में घिसट रही है
जैसे किसी लहू में डूबे जहाज़ के मस्तूल से
भाग कर बच कर यहाँ तक आई हो।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयप्रकाश