भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहु मत / अरुण देव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 27 मई 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

यह राजनीतिक कविता नहीं है / है / शायद

कच्चे रास्ते हैं
धूल और कीचड़ से भरे टूटे-फूटे ऊँचे-नीचे
मुख्य सड़क के बग़ल से फूटते हुए

आठ लेन की चमचमाती सड़क से कटकर कहीं खो जाते हैं
कभी उनपर बैलगाड़ी दिखती है
बुग्गी, भैंसे पर लुढ़कती हुई
ताँगा जिसे खींच रही है भूरे रँग की घोड़ी
गाभिन है
वह एक खच्चर की माँ बनेगी

मेहनती खच्चर जिसकी यौन आवश्यकताएँ शून्य होंगी
मुख्यधारा के लिए ढोएगा गाँवों से गुड़, सब्ज़ वगैरह

मुख्य पर जब कोई पहुँचता है पार कर उप की जकड़बन्दी
रपट जाता है

सोलह पहियों पर दौड़ता ट्रक ढो रहा है
पहाड़ों के करीने से कटे मांस के बड़े-बड़े टुकड़े

पीछे-पीछे पेड़ों के शव हैं उनकी उम्र कच्ची है
बत्तीस पहियों पर लेटे हैं एक दूसरे पर

इस विश्वात्मा में ही अब उसे रहना है
इसी वसुधैवकुटुम्ब में उसे अपनी मड़ईया डालनी है

इतना बड़ा विश्वास मत
और कहाँ वह कु-मति

बिसरा देनी है बोली बानी
परब उपपूजाएँ

सह संस्कृतियों के लिए कोई जगह नहीं है
इस भूमण्डलीकृत वैश्वीकरण में

जो अलग हैं वे दुर्घटनाओं के सम्भावित प्रक्षेत्र हैं

जब इतना विशाल बहुमत
तो शोर और चमक भी बहुमत
बातें भी बहुमत
विवाद बहुमत

खाना पहनना चलना बैठना पढ़ना सुनना सोना देखना लिखना छपना
बहुमत

चुप अल्पमत

बहुमत में इस तरह घुसते चले आते हैं अल्पमत
विराट में शून्य शून्य और शून्य

हम बहुमत का सम्मान करते हैं
अल्पमत कृपया बहुमत आने तक शान्त रहें

बहु मत
बहु मत
बहु मत ।