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क्या कहूँ / सुषमा गुप्ता
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क्या कहूँ कि
कह कर भी कितनी ही बातें
अनकही रह जानी हैं...
क्या कहूँ कि
ठहर के एक पल
देख लेने के बाद
कहना-सुनना सब बेमानी है ...
क्या कहूँ कि
जो फड़फड़ाती हसरतें हैं
पन्नों पर
जिंदगी की कलम से छूटी
अधूरी कहानी हैं ....
क्या कहूँ
कि
ये सच समझ आना
और सह जाना
कोई छोटी बात तो नही
कि जाने दो
क्या कहना
कि उससे क्या होगा
ये दुनिया है
यहाँ हर शय फानी है ।
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