भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरया और नदी का खेल / कुमार विकल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 10 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल }} '''देव...)
देवेन्द्र सत्यार्थी के लिए
हर यात्रा से लौटने के बाद
देवेन्द्र सत्यार्थी कहता है—
कि इस बार भी इसका कोई सुराग नहीं मिला
यह तो एक शरारती नदी है जो रास्ता बदलती रहती है.
सत्यार्थी—
जो ख़ुद एक चालाक दरया है
नदियों के रास्ते ख़ूब जानता है
कई नदियाँ उसके कोट की जेब से हो कर गुज़रती हैं
जिन पर वह शब्दों के पुल बनाता है
लेकिन वह तो एक शरारती नदी है
चालाक दरया की पकड़ में नहीं आती
दरया दिशाएँ बदल—बदल कर भटकता रहता है
और जहाँ—जहाँ भी जाता है
रात—रात भर उसे
एक नदी के गुनगुनाने की आवाज़ आती है
कि जिस नदी को तुमने कभी नहीं देखा
क्यों उसका रास्ता ढूँढते रहते हो?