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अजीब हाल था कल शब / कुमार नयन
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अजीब हाल था कल शब
मैं बेख़याल था कल शब।
फ़क़त ख़याल का जल्वा
कोई बवाल था कल शब।
सुकून दिन से था लिपटा
यही मलाल था कल शब।
किसी का इंतज़ारे-वस्ल
पलों में साल था कल शब।
तू कोई ख़्वाब था या सच
ये इक सवाल था कल शब।
नज़र भी कैसे कुछ आता
तिरा जमाल था कल शब।
न बेख़ुदी न चश्मे-तर
मिरा कमाल था कल शब।