भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सियह रात रंगत बदलने लगी है / कुमार नयन

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 3 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार नयन |अनुवादक= |संग्रह=दयारे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सियह रात रंगत बदलने लगी है
सहर होने को अब मचलने लगी है।

मैं ख्वाबों की दुनिया में गुम हो गया हूँ
तमन्ना जवां दिल में पलने लगी है।

किनारे पे पहुंचेगी कैसे न कश्ती
निशाने पे शमशीर चलने लगी है।

बढ़ा हौसला इस क़दर कारवां का
कि रहजन की छाती दहलने लगी है।

ये ज़ुल्मों-सितम के अंधेरे से कह दो
कि लौ सरफ़रोशी की जलने लगी है।

सितारों की महफ़िल बुलाने की ख़ातिर
ज़मीं आसमां तक उछलने लगी है।