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धूप शबनम में क्यों भिगोते हो / कुमार नयन
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धूप शबनम में क्यों भिगोते हो
मुस्कुराते हुए भी रोते हो।
सूख जाती है रात होने तक
सुब्ह फिर भी उमीद बोते हो।
लुट चुके हो कभी के क्या जानो
गांठ क्यों बार-बार टोते हो।
बोझ अपना न तुमसे उठता है
और दुनिया के बोझ ढोते हो।
इश्क़ का ही असर यक़ीनन है
ख़ूब पाते हो ख़ूब खोते हो।
जब कभी खुद से दूर होता हूँ
माँ क़सम तुम ही पास होते हो।
तुम तो चमकोगे चांद-सूरज-सा
आंसुओं से ज़मीर धोते हो।