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उसूल तोड़े महब्बत के एदारे तोड़े / कुमार नयन

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उसूल तोड़े महब्बत के एदारे तोड़े
ख़ुदा के बंदों ने बंदों के सहारे तोड़े।

बरात कैसे शरीफ़ों की कहूँ थी जिसने
मज़ार तोड़े ये दरगाह भी सारे तोड़े।

किसी तरह से गुज़र और बसर होती थी
यतीम बच्चों के ज़ालिम ने गुज़ारे तोड़े।

अज़ीम लोग सिमटकर ही रहा करते हैं
समन्दरों ने कहां अपने किनारे तोड़े।

यक़ीन कितना था बाज़ू पे उन्हें भी यारब
कि नाखुदाओं ने लहरों में शिकारे तोड़े।

रहेगा अहद भी ये याद हमारा जिसने
तमाम रिश्ता-ए-एहसास हमारे तोड़े।

ये आशिक़ों का जुनूँ भी हैं करिश्मे की तरह
इसी जुनूँ ने महब्बत में सितारे तोड़े।