असाढ़ के महिना / ध्रुव कुमार वर्मा
लागिस असाढ़ के महिना भइय्या,
मारिस पानी... तानके।
खेती-बारी के काम ह चलगे,
जागिस भाग .... किसान के।
जिवरा ओकर आज जुड़ाइस,
बपुरा बने बतर ला पाइस।
उपरोहित ला, पूछके जल्दी,
देवता मन मां मूठ चढ़ाइस।
धारिस नागर मंड ल अऊ,
मंडलिन डलिया धान के॥1॥
ओढ़िस खुमरी बांधिस कमरा,
फांदिस बइला बल्हा कबरा।
एड़हा बेड़हा जोत के कर दिस,
एक बरोबर खचका डिपरा।
सफरी, पड़री, गुरमटिया अऊ,
बोइस धान अजान के॥2॥
कोनो बोवय खुर्रा मां,
पहिले ले उत्तरा धुर्रा मां।
सुंदर हरियर फीका दिखथे,
मटासी अऊ पथर्रा मां।
कोनो करथे नावा खेती,
दूर देश जापान के॥3॥
हरिया दू हरिया जोताइस,
जब बीड़ी के सुरता आइस।
निकालिस तब कड्डा वोहा
धूंआं ऊपर धूंआ उड़ाइस।
बीड़ी पीके चलिस ददरिया,
मंउल के मितान के॥4॥
जब चेथी में बेरा आथे,
बपुरा के जी कऊआ जाथे।
छोड़िस नागर लेके बइला,
लकरे लकर घर मां आथे।
निकालिस मंडलिन बासी,
अऊ चटनी अथान के॥5॥
बादर गरजय, बरसय पानी
अऊ किसान का हरय किसानी।
माटी मां माटी मिल जाथे,
मोर मंडल के इही कहानी।
एहा ठलहा नइए निचट,
संझा न बिहान के॥6॥
अन्न उपजाथे, करज पटाथे,
सुक्खा के सुक्खा रहि जाथे।
ए तो तरसय दाना बर अउ,
बइठागुर मन मजा उड़ाथे।
सेठ चुहक के नंगरा कर दिस,
एला सिधवा जान के॥7॥
मिलिस वोट तह नेता भागय,
ओ ककरो का बाप के लागय।
स्वारथ बर सब भरथे भइय्या,
लबरा मन ला लाज नई लागय।
कुर्सी देख उंघासी आथे,
सुरता नइए किसान के॥8॥
पानी, बादर, घाम ल सइथे,
टूटहा फूटहा घर मा रइथे।
सस्ता चिरहा पटका पहिरे,
बासी पेज पसइय्या पीथे।
एला देखय कई करोड़,
आँखी हा हिन्दूस्थान के॥9॥