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बच रहे हैं तो रचने के लिए / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय

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कुछ होना चाहिए
हम सब के बीच बार बार लगातार
वह हो रहा है हर बार
करना पड़ता है स्वीकार
होते रहने में ही होना है
होने में ही बचना है
बच रहे हैं हम और आप सभी
बचते हुए होना है
निमग्न होकर बचने की ख़ुशी में
 
बैठेंगे नहीं शांत होकर
यदि बचे हैं अभी तक
किन्हीं कारणों से छुट कर
रच रहे हैं एक दुनिया
एक जीवन और एक समय
रह रहे हैं जिसमें
जी रहे हैं जिसे
वर्तमान रहने का समय
है दे रहा जो हर बार

हम खुश हैं
संसार खुश है
दुखी हैं हम यदि अभी
सब के अन्दर दुःख है
सुख है कि जो है सबके साथ है
कोई अभी सनाथ है तो बाद में अनाथ है
नहीं हैं यदि इस दायरे में
स्वार्थ है या परमार्थ है

हम हंस रहे हैं
बच रहे हैं इसलिए
बच रहे हैं इसलिए कि
होने का हमें ज्ञान है
बचे रहना है आगे भी इसी तरह
इसीलिए रच रहे हैं

रच रहे हैं तो बचने के लिए
बच रहे हैं तो रचने के लिए