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फागुन में सावन / महेन्द्र भटनागर

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नव उत्साह भरे
हँसिया सान धरे
गेहूँ की सूखी बालें
काट रहा
भूखा-प्यासा कृषक-कुटुम्ब
बिना विलम्ब !

असमय
चपला-नर्तन घन-गर्जन
बूँदा-बाँदी,
माटी की सोंधी गंध महकती !

पर, स्वागत पर प्रतिबन्ध,
प्रकृति मनोरम पर, वर्षा-देव हुए हैं अंध,
तभी बेमौसम
फागुन में सावन !