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अपने भीतर / अरविन्द पासवान
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करते हुए क्रमिक विकास
हमने स्थापित किए हैं
कई प्रतिमान
हमने छुई हैं
अनंत उचाइयाँ
लाँघी हैं
असीम सीमाएँ
मापी हैं
अतल गहराइयाँ
हम पहुँचे हैं
चाँद के पार भी
पर इस क्रमिक विकास में
हम कितना पहुँच पाए हैं
अपने भीतर !