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आग जला / राम सेंगर
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मरने से पहले
इस जीने की कोशिश में
दृश्य के अन्धेरे को
पच्च-पच्च पीटना फ़िजूल !
रक्त में सुलगता है
कण्डा कोई गीला
ख़ुद को बिल्कुल ढीला छोड़ !
इस ठण्डी बालू में
चने नहीं तिड़केंगे
आग जला, मत भट्ठी फोड़ !
आत्मसजग होकर
इस ढाँचे के भीतर घुस
रख सारे ताक पर उसूल !
बिम्ब नए सच की
हर धड़कन से युक्त बना
भहराये होश को सँभाल !
होश, मौन प्रक्रिया है
बात को पकड़ने की
बाक़ी सब जी का जँजाल ।
अनगढ़ता से सिरजा
भाषा का बाँकापन
दिए बिना बातों को तूल ।
मरने से पहले
इस जीने की कोशिश में
दृश्य के अन्धेरे को
पच्च-पच्च पीटना फ़िजूल !