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दृश्य आजकल / कुमार मंगलम

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एक
कुछ इतिहास थे
जो मिथक में तब्दील हो रहे थे
और उसकी आड़ में
लोग होते जा रहे थे
बलवाई और अराजक

अचानक इतिहास पुरुष की
आँखों से ख़ून बहने लगा
मिथक अब अपना रूप बदल रहे हैं ।

दो

अचानक एक बहुत
बहुत चुप आवाज़

बोल पड़ती है
तुम्हारे कानों से लहू बहने लगता है ।

तीन

प्रतिमा पूजने वाले
प्रतिमा गढ़ने वाले

भागने लगते हैं
जब प्रतिमान निर्मित होते हैं ।

चार

धरती के गर्भ में पलती हैं
तुम्हारी

अहमन्यताएँ
तुम्हारे ज़ुल्म

तुम्हारे सारे कर्म-कुकर्म
एक लम्बे इन्तज़ार के बाद
निर्मित होता है कोई ज्वालामुखी

पाँच

कई बार फट चुके हैं ज्वालामुखी
फटकर भी उगलें हैं उन्होंने खनिज
और तुम्हारे अय्याशी के साधन
कि तुम समझौता कर सको
बेच सको हिण्डाल्को, अडानी और अम्बानियों को
मार सको उनको जो आख़िरी जन हैं
तुम्हारे सबसे बड़े जनतन्त्र के

जो तुम्हारे भोग से पैदा हुआ है
नाजायज़ ही कहलाया

पर सावधान !
ज्वालामुखी फटते रहेंगे
और उनमें से नहीं निकलेगा सिर्फ़ खनिज ।