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सदा कोई मुसलसल आ रही है / अलका मिश्रा
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सदा कोई मुसलसल आ रही है
थकन क़दमों को रोके जा रही है
तेरी उम्मीद तेरे दर की ख़्वाहिश
अधूरे ख़्वाब सी तड़पा रही है
बढ़ी रफ़्तार मेरी धड़कनों की
तेरी साँसों की ख़ुशबू आ रही है
उधर टूटा है तारा आसमाँ से
दबी ख़्वाहिश लबों तक आ रही है
क़रीब आए हैं वो जब से हमारे
हर इक ज़ंजीर खुलती जा रही है