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लम्हा-लम्हा बिखर रही हूँ मैं / अलका मिश्रा

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लम्हा-लम्हा बिखर रही हूँ मैं
आइनों से गुज़र रही हूँ मैं

उसकी आँखों के रास्ते होकर
दिल का ज़ीना उतर रही हूँ मैं

सानेहा वो गुज़र गया मुझ पर
अपने साए से डर रही हूँ मैं

मुझको लूटा है सिर्फ़ ख़ुशियों ने
दर्द पाकर सँवर रही हूँ मैं

ज़िन्दगी कह रही है चुपके से
धीरे-धीरे गुज़र रही हूँ मैं