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बिछड़न / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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"तुम्हारे ख़्वाब सजाते-सजाते;
मौत ना आई मुझको;
उन ख़्वाबों में से मिरा इक ख़्वाब,
मौत भी था;
तुमसे मिलकर लगा कि सब-कुछ
बहुत अच्छा होगा;
तुमसे बिछड़ेंगे भी;मगर
ये तो सोचा ही नहीं था."