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पराई से प्यार / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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मैं आया था अपनी दुनिया से
तुम भी अपनी दुनिया से निकल पड़ी थीं
कोई इरादा न था
न कोई वादा था
बस, मुलाक़ात हुई ।

हमें पता था
यह दरमियानी है
हमें जाना है
अपनी-अपनी दुनिया में
या कहीं और
जहाँ हम नहीं होंगे
एक दूसरे के लिए ।

सिर्फ़ रह गया
हमारी याद में
एक असम्वैधानिक चुम्बन !