भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन परों में उड़ान ज़िंदा है / अलका मिश्रा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 25 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलका मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन परों में उड़ान ज़िंदा है
उनमें इक आसमान ज़िंदा है

हारी बाज़ी वो जीतना चाहे
याने अब भी गुमान ज़िंदा है

वक़्त ने घाव भर दिया लेकिन
अब भी उसका निशान जिंदा है

आदमी हौसला रखे कब तक
रोज़ इक इम्तिहान ज़िंदा है

जाके ऊँचाइयों पे ये जाना
अब भी इक पायदान ज़िंदा है