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मुझे तितली पसन्द है / उज्ज्वल भट्टाचार्य
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मुझे तितली पसन्द है ।
मैं चाहता हूँ
वह मेरी हथेली पर हो
मैं उसे जी भर देखता रहूँ
नर्म हाथों से सहलाऊँ
पागलों की तरह
उसे चूमता रहूँ
जब तक न
मेरे होंठ दुखने लगें ।
तितली को ये बातें पसन्द नहीं
वह कहती है :
नहीं, मेरा रँग उड़ जाएगा
तुम्हारी चाह भी शायद ख़त्म हो जाएगी ।
मैं उड़ती रहूँगी
तुम्हारे इर्दगिर्द
तुम्हारी उँगलियाँ
मुझे छूने की कोशिश करेंगी
मैं पास होऊँगी
लेकिन तुम्हारी पहुँच के बाहर ।
यह कहकर
वह फ़ुर्र से उड़ जाती है ।
मैं मान जाता हूँ
ललचाई आँखों से
उड़कर दूर जाते हुए
उसे देखता रहता हूँ ।
लेकिन मुझे तितली पसन्द है
मैं उसे छूना चाहता हूँ ।