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एक कविता पंक्ति / स्नेहमयी चौधरी

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न जाने कब से मैं

एक कविता-पंक्ति ले

यहाँ-वहाँ भटकी हूँ।


कल गर्मी थी :

धूप थी,तपन थी।

आज बरसात है :

ऊपर घिराव और नीचे गिजगिजाहट है।

कल ठण्ड हो जायेगी :

भाव,छन्द सब जमेंगे।


आह ! यह मेरी भटकती पंक्ति कविता की अकेली,

टूटी कड़ी-सी

अब किसी से न जुड़ पाएगी।