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कइसे ईमान बचतय हम्मर / सिलसिला / रणजीत दुधु

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कइसे ईमान बचतय हम्मर, भीड़ लगल बैइमान के हे
केकरा फरियाद सुनइअय हम, सरदारी तो सैतान के हे

ऊपर से देखवऽ तऽ चेहरा
बिलकुल भोला भाला हे
भीतर एकदमे से धोल
दीदा काला काला हे

बतर एकर करनी हे बोली तइयो गुमान के हे
कइसे ईमान बचतय हम्मर, भीड़ लगल बैइमान के हे।

जब दीदे में न´ पानी हे
तो समझऽ खतम कहानी हे
के ओकरा पर भरोसा करतय
जेकर उल्टल बोली बानी हे

भरसटे के हय बरक्कत समय न´ ई इंसान के हे
कइसे ईमान बचतय हम्मर, भीड़ लगल बैइमान के हे।

हम अप्पन फरज निभावऽ ही
तइयो गरियावल दुत्कारल जा ही।
हम अपना भर चल रहलूँ हऽ,
तइयो टिटकारल जा ही

कइसे गरीब सब बचतय अब ई दुनिया तो धनवान के हे
कइसे ईमान बचतय हम्मर, भीड़ लगल बैइमान के हे।

चोर चोर मउसेरा भाय बनल,
हमही निपट अकेला ही।
जतना भी मिले हे गुरूए हम्मर,
हमही तो चौपट चेला ही॥

जो खुल के हम बोल देवइ तो आफत हम्मर जान के हे
कइसे ईमान बचतय हम्मर, भीड़ लगल बैइमान के हे।