भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नयनमा से नीन उड़लय / सिलसिला / रणजीत दुधु
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 28 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रह गेलय अधूरा सपनमा, नयनमा से नीन उड़लय,
थर-थर काँपऽ हय बदनमा नयनमा से नीन उड़लय।
एक तो कत्ते दिन पर आल सुख सपना
दुनियाँ में कोय तो बनल हल अपना
छुट गेलय हाथ से दामनमा, नयनमा से नीन उड़लय
रह गेलय अधूरा सपनमा, नयनमा से नीन उड़लय।
आ जो रे निंदिया सुनैवौ हम लोरी
तोरा संग घूमे हम जैवौ चोरी चोरी
अब करूँ कउने जतनमा-नयनमा से नीन उड़लय
रह गेलय अधूरा सपनमा, नयनमा से नीन उड़लय।
सुरूज के चद्दर ओढ़यलक कुहासा
के अब देतय रउदा के दिलासा
कइसे बचतय अब परनमा नयनमा से नीन उड़लय
रह गेलय अधूरा सपनमा, नयनमा से नीन उड़लय।
पियासल अँखिया में धोवल हे कजरा
कतनो सम्हारूँ सम्हरे नय अँचरा
सर-सर सरके हे पछुआ पवनमा
नयनमा से नीन उड़लय
रह गेलय अधूरा सपनमा
नयनमा से नीन उड़लय।