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साँझ रँगीली आई है / कविता भट्ट

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साँझ रंगीली आई है नवपोषित यौवन शृंगार लिये
मुक्त छंद के गीतों का सृजन कुसुमित प्रसार लिये


अपरिचित अनछुआ व्योम भी आज सुपरिचित लगता है
तम में दीप शिखाओं का विजयगान सुनिश्चित लगता है


मंद श्वास की वृद्ध गति में यौवन का संचार लिये
 जीवन से मिले प्रहारों के आशान्वित उपचार लिये


आलोक तिमिर को चीर चला, निशा का मौन समर्पण है
कोई खड़ा कपाट खोलकर, रश्मियों का आलिंगन क्षण है


नर्म उष्ण लालिमामय अधरों पर झंकृत स्वर उद्गार लिये
 बिना पदचाप ऋतुओं का परिवर्तित स्वप्नमय संसार लिये


ये कौन मूक निमंत्रण पाकर, प्रणय-अभिसार लिये
साँझ रंगीली आई है नवपोषित यौवन शृंगार लिये