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परकिरती के सम्मान करऽ / सिलसिला / रणजीत दुधु

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परयावरण बचावऽ जग के नयका जीवन दान करऽ
जीवन जीये ले परकिरती के जी भर के सम्मान करऽ।

शुद्ध हवा के बिना न बचतइ कउनो प्राणी आऊ इंसान
एकरे में ले ही साँस बचावे ई हे हम्मर परान।

जीअऽ आउ जीये दा सबके सुख के दान करऽ
चैन से जीये ले परकिरती के न´ कौनो नुकसान करऽ।

रंगन रंगन के परदूषण हम मूरख सन फइलावऽ ही
बदबू धुइयाँ जहर भरल फइला के हम नितरावऽ ही।

चिमनी कारखाना के दूषित गइस के न´ तू पान करऽ
जीवन जीये ले परकिरती के जी भर के सम्मान करऽ।

जल ही प्राणी के जीवन हइ ई पढ़ते-सुनते अइलूँ हन
किसिम किसिम के खाद नहर से नदिया जहर बनइलूँ हन।

पनियन के न´ तू नष्ट करऽ ई धरती पर एहसान करऽ
जीवन जीये ले परकिरती के जी भर के सम्मान करऽ।

जीवन में अगर चाहऽ ह कि आ जाय सचमुच खुशहाली
लगवऽ सगरो पेड़ ले आवऽ धरती पर हरियाली।

जीवनदाता हे परकिरती तू एकर गुणगान करऽ
जीवन जीये ले परकिरती के जी भर के सम्मान करऽ।