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सीख ला / सिलसिला / रणजीत दुधु

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हँस हँस फूल सिखावे हमरा
महँकऽ आउ मुसकावऽ
भउँरा कहे गुण के देखऽ
गावऽ मत तों शरमावऽ।

हवा बह के ईहे कह रहल
सबके जग में जीये दा
नदिया कल-कल बह कहे
सबके ठंडा पानी पीये दा।

सूरूज के किरिन धरती के
अँधियारा हर ले हे
लगल रहऽ हरदम काम में
ई हे संदेशा दे हे।

धरती मइया सब जीवन के
सुख से भार उठावे
पर अपन एहसान कहियो
दोसर पर नज जतावे।

करिया बादर आकाश से
रिमझिम बुन बरसावे
सदा दोसर के सेवा कर
खुश रहेले सिखलावे।

धूइयाँ आकाश में उठके
उन्नति के राह देखावे
धारा आगे बह राह के
रोड़ा-पत्थर अपन हटावे।

गाहत फल से झुक सीखवे
दान देवे माथा झुकावे ले
पतझड़ में भी आस न´ तजिहें
भय से न´ घबरावेले।

तिल तिल कर दीया अपन
जीवन के स्नेह जरावे
अन्हार से भिड़े अकेले
साहस धीरज सीखावे।

अगर सीखे के इच्छा हो तोरा
सबसे सीख सकऽ हा
आगे बढ़े ले ऊपर चढ़े ले
सच कहे ले सीख सकऽ हा।