भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीमार मन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:26, 3 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बीमार मन
सिंधड़ता है रोज़
बाँटता रोग
ईर्ष्या- द्वेष की सीली
काठ न जले
धुँआँ ही उगलती
नज़र न आए
खुद का भी चेहरा,
धुएँ के कोड़े
क्रुद्ध हो फटकारे
रुकना कहाँ
फेन मुँह से झरे
शब्दों का लोप
विवेक अधमरा
रात व दिन
अंगारों पर चले
औरों को दर्द ही दे
खुद भी पाए
रोगी का तन
औषध जब मिले
फूल- सा खिले
मनोरोगी कुपित
कभी चैन न पाए।
-0-