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कौन तुम / महेन्द्र भटनागर
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कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो ?
- लोक-धूमिल रँग दिया अनुराग से,
- मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
- दे दिया संसार सोने का सहज
- जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो ?
- वीथियाँ सूने हृदय की घूम कर,
- नव-किरन-सी डाल बाहें झूम कर,
- स्वप्न छलना से प्रवंचित प्राण की
- चेतना मेरी जगायी चूम कर,
कौन तुम नभ-अप्सरा-सी इस तरह बहका गयी हो ?
- रिक्त उन्मन उर-सरोवर भर दिया,
- भावना संवेदना को स्वर दिया,
- कामनाओं के चमकते नव शिखर
- प्यार मेरा सत्य शिव सुन्दर किया,
कौन तुम अवदात री ! इतनी अधिक जो भा गयी हो ?