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यकीं किस पर करूँ / कुलवंत सिंह
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यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है॥
दिये हैं जख्म उसने इतने गहरे भर न पाएंगे,
भरोसा उठ गया अब आदमी हैवान दिखता है।
शिकायत करते हैं तारे जमीं पर आके अब मुझसे,
है मुश्किल देखना इंसां को नंगा नाच करता है।
वजह है दोस्ती और दुश्मनी की अब तो बस पैसा,
जरूरत पड़ने पर यह दोस्त भी अपने बदलता है।
है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है।
भले कितनी गुलाटी मार ले चालाक बन इंसां
न हो मरजी खुदा की तब तलक पानी ही भरता है।
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है।