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ज़िन्दगी से ज़िन्दगी ऐसे अलग / विनय मिश्र

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ज़िन्दगी से ज़िन्दगी ऐसे अलग
 एक घर में हों कई कमरे अलग

 एक हिस्सा सोचता ही रह गया
 दूसरा जब हो गया उससे अलग

 हो रहे अपने मुनाफे के लिए
 इस नए व्यापार में रिश्ते अलग

 धीरे-धीरे जुड़ गए हैं तार सब
 एक हैं सब कौन है किससे अलग

 चाल चलने को मिलाता है मगर
 ज़ेहन में रखता है सब पत्ते अलग

 छोटी-छोटी हर ज़रूरत के लिए
 हर क़दम पर हो रहे सौदे अलग

 कुछ नया ही मैकदे का रंग देख
 कर लिए हमने भी पैमाने अलग