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उषा रानी / महेन्द्र भटनागर
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नील नभ-सर में मुदित मुग्धा उषा-रानी नहाती है !
- शशि-बंध में बँध, रात भर आसव पिया
 - प्रतिदान जिसका प्रीति पावन से दिया
 - नव अंगरागों से जगत सुरभित किया
 
सोच हेला-हाव, अरुणिम तार रेशम के बहाती है !
- नव रंग सरसिज के भरे जिसका वदन
 - परितोष भावों को किये जैसे वहन
 - प्रिय कल्पना में मंजु मंगल मन मगन
 
रे अकारण हर दिशा सीकर उड़ाकर गहगहाती है !
	
	