भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा / विनय मिश्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 6 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इस मौसम में जहांँ खुशियांँ
जीवन से
पत्तियों की तरह झर रही हैं
और चढ़ती हुई रात
ऊंँचे स्वर में
दिन का मरसिया पढ़ रही है
सोचता हूंँ
हौसलों के बल पर
अंँधेरे के ख़िलाफ़
जागते रहने से
कुछ तो वक़्त गुजरेगा
यह अलग बात है
कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ
सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा